नेपाल में संकट गहराया — 13,572 कैदी फरार, सेना तैनात और सुशीला बनीं अंतरिम प्रधानमंत्री की दावेदार

नेपाल में राजनीतिक और सुरक्षा का संकट चरम पर पहुँच गया है। नवीनतम रिपोर्टों के अनुसार देश भर की जेलों से कुल 13,572 कैदी फरार हो गए हैं, जिससे सुरक्षा व्यवस्था पूरी तरह अस्थिर हो गई। इस गंभीर स्थिति के मद्देनजर सरकार ने कई संवेदनशील इलाकों में सेना तैनात कर कर्फ्यू लगा दिया है और धारा 144 लागू कर दी है।
घटनाक्रम की शुरुआत उस समय और तीव्र हुई जब राजधानी काठमांडू और अन्य शहरों में विरोध प्रदर्शन हिंसक रूप ले गए। प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच झड़पों की खबरें आ रही हैं। कई स्थानों पर दुकानों और सार्वजनिक सम्पत्तियों को नुकसान पहुंचा, सड़कों पर यातायात ठप पड़ा और आम जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ। प्रशासन ने लोगों से घरों में रहने और अनावश्यक बाहर निकलने से बचने की अपील की है।
सबसे चिंतनीय खबर यह है कि जेलों से 13,572 कैदी फरार हो गए, जिससे कानून-व्यवस्था और भी अधिक खतरे में पड़ गई। इन फरार कैदियों की गतिविधियों और उनकी संभावित हिंसक कार्रवाइयों को देखते हुए सरकार ने तत्काल कदम उठाए। सुरक्षा बलों और पुलिस की टोह तेज कर दी गई है और कई स्थानों पर सख्त चेकिंग-पोस्ट लगाए गए हैं।
प्रदर्शन और जेल भगोड़े घटनाक्रम के बीच पूर्व प्रधानमंत्री प्रदीप के घर पर भी हमला हुआ। उनके आवास के बाहर बड़ी भीड़ इकट्ठा हुई और पथराव की घटनाएं सामने आईं। कुछ सुरक्षाकर्मी हल्के रूप से घायल हुए बताए जा रहे हैं। प्रदीप के निवास पर सुरक्षा ने मोर्चा संभाला और आसपास के इलाकों में अतिरिक्त सुरक्षा बल भेजे गए।
इसके साथ ही, अखबार की कटिंग के अनुसार, बेचू में पड़ी सुशीला को अंतरिम प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाना तय है। यह जानकारी राजनीतिक घमासान को और जटिल बना देती है — सरकार की नियुक्तियों और बदलावों से विरोधी दल और गली-चौराहे पर मौजूद लोग और अधिक गुस्से में दिख रहे हैं। सुशीला की संभावित नियुक्ति को कुछ दल समर्थन दे रहे हैं तो कुछ इसे तात्कालिक सियासी फेरबदल करार दे रहे हैं।
ओपेरा यानी पूर्व प्रधानमंत्री शेरबहादुर देउबा (देउबा जिन्हें स्थानीय स्तर पर ‘ओपेरा’ भी कहा जाता है) पर भी लोगों का ध्यान गया है। देउबा के आवास के बाहर भी भारी भीड़ एकत्रित हुई और उनकी सुरक्षा चुनौतीपूर्ण हो गई। सुरक्षा बलों को वहां भी स्थिति नियंत्रित करने के लिए सख्ती से कार्य करना पड़ा।
देउबा की राजनीतिक साख और उनके समर्थकों की सक्रियता के कारण प्रशासन ने उनके घर के आसपास अतिरिक्त सुरक्षा तैनात कर दी है। अधिकारियों को आशंका है कि हिंसा की लहर में देउबा को भी निशाना बनाया जा सकता है, इसलिए उनके आवास के पास बड़े पैमाने पर सुरक्षा इंतजाम बनाए गए हैं और पहुँच नियंत्रित कर दी गई है।
सरकार का बयान है कि ये कड़े कदम जन सुरक्षा और शांति बहाल करने के लिए उठाए जा रहे हैं। अधिकारी कह रहे हैं कि यदि समय रहते कठोर कदम न उठाए गए होते तो स्थिति और बिगड़ी रहती। वहीं विपक्षी दल और नागरिक समूह सरकार के इस कदम की निंदा कर रहे हैं और सेना के सड़कों पर आने को लोकतंत्र के लिए खतरा बता रहे हैं।
जनजीवन पर इसका असर साफ दिख रहा है — बाजार, विद्यालय और कार्यालय बंद हैं, परिवहन सेवाएं बाधित हैं और कई लोग घरों में कैद हैं। इंटरनेट और मोबाइल सेवाओं पर भी कुछ क्षेत्रों में सीमितता और निगरानी की खबरें हैं, जिससे सूचनाओं के प्रवाह पर असर पड़ा है। स्वास्थ्य और आपात सेवाओं को सुचारु बनाए रखने के लिए प्रशासन ने कुछ छूट निर्धारित की है, लेकिन जनता में भय और असमंजस बना हुआ है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी Nepal की इस स्थिति पर चिंता व्यक्त की जा रही है। कुछ पड़ोसी देशों एवं अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने बातचीत और शांतिपूर्ण समाधान की अपील की है। मानवीय सहायता और कूटनीतिक प्रयासों के जरिए स्थिति को सामान्य करने का दबाव बढ़ रहा है।
निष्कर्षतः, जेलों से 13,572 कैदियों के फरार होने की घटना ने नेपाल के राजनीतिक ताने-बाने को और अस्थिर कर दिया है। कर्फ्यू और सेना तैनाती के बीच सुशीला की संभावित अंतरिम प्रधानमंत्री नियुक्ति, साथ ही देउबा (ओपेरा) के आसपास सुरक्षा की कड़ी व्यवस्था — ये सभी संकेत दे रहे हैं कि देश अभी एक संवेदनशील मोड़ पर है। आगे का घटनाक्रम इस बात पर निर्भर करेगा कि सरकार, विपक्ष और नागरिक समाज मिलकर कितनी तेजी व समझदारी से बातचीत के जरिए समाधान निकाल पाते हैं।

