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राधाकृष्णन बने देश के 17वें उपराष्ट्रपति, भारी मतों से दर्ज की ऐतिहासिक जीत

राधाकृष्णन बने देश के 17वें उपराष्ट्रपति, भारी मतों से दर्ज की ऐतिहासिक जीत

CP Radhakrishnan photo The Hindu

नई दिल्ली: भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में शनिवार का दिन बेहद अहम रहा। उपराष्ट्रपति पद के चुनाव में एनडीए समर्थित उम्मीदवार राधाकृष्णन ने शानदार जीत दर्ज करते हुए देश के 17वें उपराष्ट्रपति बनने का गौरव हासिल किया। इस चुनाव में उन्होंने विपक्षी प्रत्याशी सुल्तान रेड्डी को बड़े अंतर से हराया।

चुनाव आयोग द्वारा घोषित परिणामों के अनुसार, राधाकृष्णन को 452 वोट प्राप्त हुए, जबकि विपक्ष के उम्मीदवार सुल्तान रेड्डी को 300 वोट ही मिल सके। वहीं, कुल 15 वोट अमान्य पाए गए। इस प्रकार कुल 767 सांसदों में से 752 ने वैध मतदान किया।

विपक्ष के वोट भी आए 

चुनाव की सबसे खास बात यह रही कि विपक्ष खेमे के 14 वोट भी राधाकृष्णन के खाते में गए। यह संकेत देता है कि न केवल एनडीए बल्कि विपक्षी दलों के कुछ सांसदों ने भी उन्हें समर्थन दिया। इससे उनकी जीत का अंतर और अधिक बढ़ गया।

विश्लेषकों का मानना है कि यह नतीजा भाजपा और एनडीए की रणनीतिक जीत को दर्शाता है। पार्टी ने विपक्षी खेमे में भी सेंध लगाकर यह दिखा दिया कि उनकी पकड़ संसद में काफी मजबूत है।

उपराष्ट्रपति पद का महत्व

भारत का उपराष्ट्रपति न केवल देश का दूसरा सबसे बड़ा संवैधानिक पद है, बल्कि राज्यसभा का सभापति भी होता है। यानी आने वाले समय में राधाकृष्णन राज्यसभा की कार्यवाही का संचालन करेंगे। संसदीय लोकतंत्र में उपराष्ट्रपति की भूमिका निष्पक्ष और संतुलित मानी जाती है।

राधाकृष्णन के अनुभव और व्यक्तित्व को देखते हुए उम्मीद की जा रही है कि वे इस भूमिका को कुशलता से निभाएंगे। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि संसद के ऊपरी सदन में उनकी मौजूदगी से कार्यवाही को बेहतर ढंग से आगे बढ़ाया जा सकेगा।

मतगणना और चुनाव प्रक्रिया

उपराष्ट्रपति चुनाव में 245 राज्यसभा और 543 लोकसभा सांसद वोट डालने के पात्र होते हैं। इस बार कुल 788 सांसदों में से 767 ने मतदान किया। मतदान के दौरान 34 सांसद अनुपस्थित रहे।

कुल वैध वोट: 752

राधाकृष्णन को वोट: 452

सुल्तान रेड्डी को वोट: 300

अमान्य वोट: 15

इस तरह राधाकृष्णन को आवश्यक बहुमत से कहीं अधिक समर्थन मिला।

राजनीतिक महत्व

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, इस जीत का असर आने वाले राज्यों के चुनाव और 2029 के लोकसभा चुनावों पर भी पड़ सकता है। भाजपा ने यह दिखा दिया है कि न केवल लोकसभा में, बल्कि राज्यसभा में भी उसकी स्थिति काफी मजबूत है।

वहीं, विपक्ष की हार ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि एकजुटता की कमी अभी भी बड़ी समस्या बनी हुई है। कई विपक्षी दलों ने चुनाव में एकजुट होकर लड़ाई लड़ी जरूर, लेकिन अंत तक अनुशासन बनाए रखने में सफल नहीं हो पाए।

प्रधानमंत्री और अन्य नेताओं की बधाई

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राधाकृष्णन को जीत की बधाई देते हुए कहा कि यह लोकतंत्र की जीत है और देश को एक अनुभवी नेता मिला है। गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी उन्हें शुभकामनाएँ दीं।

वहीं, विपक्षी नेताओं ने भी परिणाम को स्वीकार किया और राधाकृष्णन को बधाई दी। कांग्रेस और अन्य दलों के नेताओं का कहना था कि यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा है और वे नए उपराष्ट्रपति से उम्मीद करते हैं कि वे राज्यसभा में निष्पक्षता से काम करेंगे।

विपक्ष की स्थिति

सुल्तान रेड्डी ने हालांकि पूरी कोशिश की, लेकिन उन्हें केवल 300 वोट ही मिल पाए। यह विपक्ष की स्थिति को दर्शाता है कि संसद में उनकी संख्या अपेक्षाकृत कम है। इसके अलावा, विपक्षी एकता की कमी भी हार का बड़ा कारण बनी।

कई राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यदि विपक्ष मजबूती से एकजुट रहता, तो भले ही जीत नहीं मिलती, लेकिन अंतर कुछ कम जरूर किया जा सकता था।

भविष्य की राह

राधाकृष्णन का चुनाव भारत की राजनीति में नया अध्याय जोड़ता है। उपराष्ट्रपति के रूप में उनकी प्राथमिक जिम्मेदारी राज्यसभा का संचालन और संसद की मर्यादा बनाए रखना होगी। इसके अलावा, वे राष्ट्रपति के अनुपस्थित होने पर कार्यकारी राष्ट्रपति की भूमिका भी निभा सकते हैं।

उनसे उम्मीद की जा रही है कि वे अपने अनुभव और दूरदृष्टि से न केवल सदन की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाएँगे, बल्कि विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच संतुलन भी बनाए रखेंगे।

निष्कर्ष

राधाकृष्णन की यह जीत न केवल भाजपा और एनडीए की मजबूती को दर्शाती है, बल्कि विपक्ष की कमजोरियों को भी उजागर करती है। संसद में उनकी भूमिका आने वाले वर्षों में बेहद अहम रहने वाली है। लोकतंत्र में यह चुनाव इस बात का प्रतीक है कि जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि ही संवैधानिक पदों के भविष्य का निर्धारण करते हैं।

राधाकृष्णन अब देश के 17वें उपराष्ट्रपति के रूप में शपथ लेंगे और भारत की राजनीति में एक नई शुरुआत करेंगे।

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